Pandit Deendayal Upadhyay की प्रेरणादायक जीवन यात्रा

Wed 12-Feb-2025,01:07 PM IST +05:30

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Pandit Deendayal Upadhyay की प्रेरणादायक जीवन यात्रा Pandit Deendayal Upadhyay
    • दीनदयाल जी ने अपनी शिक्षा सीकर, पिलानी, कानपुर और आगरा में पूरी की।
    • 1937 में दीनदयाल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में शामिल हुए और अपना जीवन राष्ट्र सेवा को समर्पित कर दिया। 
Madhya Pradesh / Jabalpur :

Jabalpur/पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवन गाथा न केवल एक प्रेरणादायक कहानी है, बल्कि यह हमें जीवन में ईमानदारी, समर्पण, और देशभक्ति के महत्व को समझाती है। उनका जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और हमेशा अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे।

बचपन से ही प्रतिभाशाली
दीनदयाल जी का जन्म 25 सितंबर, 1916 को मथुरा के नगला चंद्रभान गाँव में हुआ। बचपन में ही उनकी प्रतिभा और गंभीरता को देखकर एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि वे एक महान विद्वान और नेता बनेंगे। हालांकि, उनके जीवन में कठिनाइयाँ भी कम नहीं थीं। उन्होंने बचपन में ही अपने भाई और बहन को खो दिया, जिससे उन्हें गहरा आघात लगा। लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों ने उन्हें और मजबूत बनाया।

शिक्षा और संघर्ष
दीनदयाल जी ने अपनी शिक्षा सीकर, पिलानी, कानपुर और आगरा में पूरी की। वे हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहे और छात्रवृत्ति प्राप्त की। लेकिन जब उनकी बहन की मृत्यु हुई, तो वे इतने टूट गए कि उन्होंने अपनी एमए की परीक्षा नहीं दी। इसके बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी और एक सरकारी परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यह उनके दृढ़ संकल्प और मेहनत का परिणाम था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राजनीति
1937 में दीनदयाल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में शामिल हुए और अपना जीवन राष्ट्र सेवा को समर्पित कर दिया। उन्होंने संघ के लिए पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया और उत्तर प्रदेश में संगठन का निर्माण किया। 1951 में उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के रूप में विकसित हुई।

एकता और अखंडता का संदेश
दीनदयाल जी का राजनीतिक दर्शन "एकात्म मानववाद" था, जो मानव जीवन की आवश्यकताओं और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाने पर आधारित था। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति की मूल भावना "अनेकता में एकता" है। उन्होंने हमेशा देश की एकता और अखंडता पर जोर दिया और लोगों को राष्ट्रहित के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया।

अचानक निधन और विरासत
11 फरवरी, 1968 को मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। यह दिन भारतीय राजनीति के लिए एक काला दिन था। लेकिन उनके विचार और सिद्धांत आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

प्रेरणा का स्रोत
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन हमें सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें अपने सिद्धांतों और लक्ष्यों से कभी समझौता नहीं करना चाहिए। उनकी निस्वार्थ सेवा, देशभक्ति और ईमानदारी हम सभी के लिए एक मिसाल है। उनका जीवन हमें यह संदेश देता है कि सच्ची सफलता वही है जो समाज और राष्ट्र के कल्याण के लिए हो।

आइए, हम उनके जीवन से प्रेरणा लें और अपने जीवन में ईमानदारी, समर्पण और देशभक्ति को अपनाएं। यही पंडित दीनदयाल उपाध्याय को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।